साँझ

Sanjh, e-magzine

संपादिका - अंकिता पंवार
सहसंपादक - सुधीर मौर्य 'सुधीर'































Friday 1 June 2012

साँझ जून २०१२ , सम्पादकीय



जब दुनिया बनी तो उसके साथ ही बने सुख-दुःख. पर उनसे भी पहले शायर. हाँ जब तकलीफ से जूझती माँ की छातियों में दूध सूख गया और उसने भूख से रोते बच्चे को चुप करने के लिए लोरी गाई, वो थी दुनिया की पहली नज़्म.

फिर दौर आया नज्मो का, खूब लिखी गयी, हर मौजू पर. जिसमे से एक था निसर्ग, और उनमे भी सबसे ज्यादा साँझ और सवेरे पर. उगते सूरज को सबने सलाम किया पर साँझ का तो अपना महत्व हे. उसके बिना दिन अधुरा हे, निसर्ग अधुरा हे. जीवन चक्र अधुरा हे. इसकी सुन्दरता पर रीझ कर इसपर न जाने कितने लोगो ने न जाने कितनी नज्मे लिखी. और न जाने कितनी भविष्य में लिखी जाती रहेंगी.साँझ और काव्य का रिश्ता भी अज़ल से अटूट हे.

कागज बनाने की कला शायद सबसे पहले चीन ने ईजाद की, वहां से अरब गयी.और कागज बनाने की पहली मिल लगी इटली में १२७६ में. और इस सदी में आया इन्टरनेट का दौर और शुरू हुई वेब पत्रकारिता.

साँझ, आप के सामने हे और आप के सुझावों, और रचनाओ के स्वागत को तैयार हे.
आप के अमूल्य सुझाव ही हमारा मार्गदर्शन करेंगे.

सुधीर मौर्या 'सुधीर'     

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