साँझ

Sanjh, e-magzine

संपादिका - अंकिता पंवार
सहसंपादक - सुधीर मौर्य 'सुधीर'































Thursday 5 April 2012

मार्च २०१२


मार्च २०१२, के अंक में.


काव्यधरा  में - अंकिता पंवार, विनीता जोशी, सुधीर मौर्या 'सुधीर' की कवितायं
कथासागर में - सुधीर मौर्या 'सुधीर' की लघुकथा 


अंकिता पंवार 


तुम्हारे सानिध्य में


एक प्रेम भरा
संबोधन तुम्हारा
कितना कुछ बदल देता हे
मेरे अंतर्मन में
अनगिनत फासले तय हो जाते हे
छन भर ही तुम्हारे
साथ होने की उमंग में
जीवन
विस्तारित होता चला जाता हे
वहां
जहाँ-जहाँ 
फेला हे
तुम्हारे सानिध्य का
प्रकाश
जो दिया हे
तुमने , मुझे
छन भर पहले ही
इस उजली हुई रात में


और
इस मिलन उत्सव पर
आकाश से झरती  
वर्षा की बुँदे भी 
खिलखिलाकर बिखरने लगी हे.

द्वारा उदय पंवार
भारत विहार, निकट ऋषि गैस गोदाम
हरिद्वार रोड, ऋषिकेश-249201
9536914949






विनीता जोशी


थोड़ी सी


सुबह -सुबह
स्कूटी
चलाती वह
लड़की
थोड़ी सी स्माइल देकर
भीड़ में खो गई
जाने कहाँ
आफिश की फाइलों में
छप जाती हे
उसके होटों की बनावट
गुलाबी कुरते का रंग
उतर जाता हे
उसके चश्मे में
और खिल जाते हे
गुलाब ही गुलाब
अपने आप में
खोया हुआ सोचता हे वह
जीने के लिए और क्या चाहिए
बस
मिल जाय अगर
थोड़ी सी स्माइल 


तिवारी खोला,
पूर्वी पोखार्खाली
अल्मोरा-२६३६०१
०९४११०९६८३०




सुधीर मौर्या 'सुधीर'


बात जो उनके अबरू पे...


मोसम बहक गए हर सिम्त बदल गई
बात जो उनके अबरू पर चल गई


जाते ही हुआ रुसवा महफ़िल में उनकी यारो
वो बेवफा हे बात जो होठो से निकल गई


दिल ने किया हमनवा जो प्रजात-इ- बुत को
क़ोम के फर्जन्दो की नज़रे बदल गई

आने को वो हे इस वीरान-ऐ  बयाबाँ में  
पाते ही खबर ये हर सिम्त समहल गई












LAGHKATHA



हड़ताल   का अर्थ 


मालिक के केबिन से निकलकर नंदन जब बाहर निकला तो उसकी छाती घमंड से चोडी थी.


आज कंपनी के मालिक ने उसकी चिरौरी की थी हड़ताल ख़त्म करने के लिए पर वो टस  से मस  नहीं हुआ था. उसे डबल बोनस है हाल में चाहिए था, अगर नहीं तो हड़ताल जारी.


केबिन  से बाहर निकलते ही उसके पास श्याम भागते हुए था, लगभग गिडगिडाते हुए बोला था. नंदन बाबू कुछ बीच का रास्ता निकल के हड़ताल बंद कर दो घर पर बच्चे भूख से बिलबिला रहे हे.


नंदन हेकड़ी से बोलते हुए - कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता हे, वहां से निकल गया था.


घर पर उसकी बीवी इन्तजार कर रही थी, बेटे को ज्वर १०२ दिघरी पहुच गया हे. नंदन के आते ही उसे बताती हे.


नंदन आनन् फानन उसे ऑटो में लेकर हस्पताल भागता हे.


रिस्प्सन काउंटर पर नर्स बोलती हे बच्चा एडमिट नहीं हो सकता .


नंदन पूछता हे क्यों .


नर्स बोलती हे हास्पिटल में हड़ताल हे, कोई डाक्टर नहीं हे.


नंदन को हड़ताल का अर्थ समझ में आने लगता हे.     



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