साँझ

Sanjh, e-magzine

संपादिका - अंकिता पंवार
सहसंपादक - सुधीर मौर्य 'सुधीर'































Friday 1 June 2012

साँझ,जून २०१२-सामग्री



अतीत से में - शहरयार, अदम 'गोंडवी', फिराक गोरखपुरी, और परवीन शाकिर  
काव्य धरा में - संजय वर्मा 'दृष्टि', विनीता जोशी, सबा युनुस, सफलता सरोज और मधुर गंज्मुरादाबदी.
कथासागर में - डॉ. तारा सिंह की लघुकथा   
व्यंग-मृदंग में - स्वप्निल शर्मा  
लेख-आलेख में - निकिता बेदी  

साँझ जून २०१२ , सम्पादकीय



जब दुनिया बनी तो उसके साथ ही बने सुख-दुःख. पर उनसे भी पहले शायर. हाँ जब तकलीफ से जूझती माँ की छातियों में दूध सूख गया और उसने भूख से रोते बच्चे को चुप करने के लिए लोरी गाई, वो थी दुनिया की पहली नज़्म.

फिर दौर आया नज्मो का, खूब लिखी गयी, हर मौजू पर. जिसमे से एक था निसर्ग, और उनमे भी सबसे ज्यादा साँझ और सवेरे पर. उगते सूरज को सबने सलाम किया पर साँझ का तो अपना महत्व हे. उसके बिना दिन अधुरा हे, निसर्ग अधुरा हे. जीवन चक्र अधुरा हे. इसकी सुन्दरता पर रीझ कर इसपर न जाने कितने लोगो ने न जाने कितनी नज्मे लिखी. और न जाने कितनी भविष्य में लिखी जाती रहेंगी.साँझ और काव्य का रिश्ता भी अज़ल से अटूट हे.

कागज बनाने की कला शायद सबसे पहले चीन ने ईजाद की, वहां से अरब गयी.और कागज बनाने की पहली मिल लगी इटली में १२७६ में. और इस सदी में आया इन्टरनेट का दौर और शुरू हुई वेब पत्रकारिता.

साँझ, आप के सामने हे और आप के सुझावों, और रचनाओ के स्वागत को तैयार हे.
आप के अमूल्य सुझाव ही हमारा मार्गदर्शन करेंगे.

सुधीर मौर्या 'सुधीर'     

जून २०१२ अतीत से


ग़ज़ल 

कैसा माजी था, क्या है हाल अपना
देखना था हमे जवाल अपना

और भी हो गये है हम तनहा
एक ज़रा आया था, ख्याल अपना

दश्त हो, बाज-गश्त से आबाद
कोई दोहराय, फिर सवाल अपना 

ये सफ़र ख़त्म यूँ नहीं होता
रास्ता बदलें, माह-ओ-साल अपना

देख, हम फिर, जला रहे है चिराग
ऐ हवा, होंसला निकाल अपना

शहरयार


अदम गोंडवी की ग़ज़ल

किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी
कल के  बदनाम अंधेरों पे मेहरबाँ होगी

शहर-शहर में मुख्तलिफ जुबान के झगड़े 
मुझको लगता हे नई नस्ल बेजुबाँ होगी

खिले हें फूल कटी छातियों की धरती पर
फिर मेरे गीत में मासूमियत कहाँ होगी

आप आयन तो कभी गावं की चौपालों में
मे रहूँ या न रहूँ भूख मेजबाँ होगी

बकौल डार्विन बुजदिल ही मरे जायंगे 
सरकशी यूँ ही 'अदम' मेरे कारवां होगी

अदम गोंडवी      


फिराक गोरखपुरी की ग़ज़ल

                                                      
वुसते-बेकराँ में खो जाए
आसमानों के राज़ हो जाए

क्या अजब तेरे चंद तर-दमन 
सबके दागे-गुनाह धो जाए

शादो-नाशाद हर तरह के हें लोग
किस पे हंस जाए,किस पे रो जाए

यूँ ही रुसवाइयों का नाम उछले
इश्क में आबरू डुबो जाए

जिन्दगी क्या हे आज इसे ऐ दोस्त
सोच लें और उदास हो जाए

फिराक गोरखपुरी  

परवीन शाकिर की नज़्म

                                                                     आज की शब तो कोई तौर गुज़र जायगी


रात गहरी हे मगर चाँद चमकता है अभी
मेरे माथे पे तेरा प्यार दमकता अभी
मेरी सांसो में तेरा लम्स महकता है अभी
मेरे सिने में तेरा नाम धडकता है abhi
जीस्त करने को मेरे पास बहुत कुछ हे अभी

तेरी आवाज़ का जादू है अभी मेरे लिए
तेरे मलबूस की खुशबु है अभी मेरे लिए
तेरी बाहें, तेरा पहलु है अभी मेरे लिए
सबसे बढकर, मेरी जां ! तूँ है अभी मेरे लिए
जीस्त करने को मेरे पास बहुत कुछ है अभी
आज की शब तो कोई तौर गुज़र जाएगी

परवीन शाकिर
       

  

      

जून २०१२ काव्य धरा



संजय वर्मा 'दृष्टि' 


टेसू

खिले टेसू
ऐसे लगते मानो
खेल रहे हो पहाडो से होली
सुबह का सूरज
गोरी के गाल
जैसे बता रहे हो
खेली हे हुने भी होली
सन्ग टेसू के
प्रकृति के रंग की छटा 
जो मोसम से अपने आप
आ जाती है धरती पर
फीके हो जाते हैं हमारे
निर्मित क्रत्रिम रंग
डर लगता है
कोई काट 
न ले विरिछों को
ढँक न ले प्रदुषण सूरज को
उपाय ऐसा सोचें
प्राकृत के संग हम
खेल सके होली.


१२५, शहीद भगतसिंह मार्ग (लोहार पट्टी)
मनावर, जिला - धार, ४५४४४६ 




विनीता जोशी



माँ जैसी

जंगल के 
बीचों- बिच
पसरी हे बूढी नदी

सूरज की ओर
पीठ किये
उसके
पत्थर के सिरहाने तले 
अब भी बचें है
कल-कल कतरे सपने

मंसूबो की गहरी
कांख में दबाये
कभी झपकी लेती फिर
जग जाती
किसे क्या देगी का
हिसाब लगाती
एकदम माँ जैसी

तिवारी खोला
पूर्वी पोखर खाली
अल्मोरा -२६३६०१
09411096830







 सबा युनुस


 मुझे खोने के डर से.. 

1  

  मेरे हाथों की लकीरों में खुद को ढूंढ रहा था वो,

मुझे खोने के डरसे खौफज़दा था वो,



अपने अश्को को पलकों में छुपाये,

अपनी बेबसी पे हस रहा था वो..

बिखरे हुए ख्वाबो के टुकड़े बटोर कर,
मुझे हिम्मत दे रहा था वो,

सिसकती आँहों को सीने में दबाये,
उम्मीदों के महेल खड़े कर रहा था वो,

अपने जज्बातों से कुछ इस तरह लड़ रहा था वो,
के, किस्तों में हस रहा था,
और.. किस्तों में रो रहा था वो...

कानपूर
09336205773



सफलता सरोज
प्यार

प्यार है महल भावनाओ का
नीवं पे विश्वास की है जो खडा

आस की हर ईंट है इसमें गडी
गारे की हर सवेदन से जोड़ी गयी
प्यार भक्ति-शक्ति की प्राचीर है
टूटी न कभी, है बहुत तोड़ी गयी

प्यार है असीम दर्द वेदना
आराधना उपासना है प्यार है
प्यार में अनुभूति है, विभूति है
प्यार निराकार में, साकार में

प्यार गगन के हेरदय में पल रहा
प्यार धरा का असीम त्याग है
प्यार में ईश-सी पवित्रिता
नेह का निसर्ग्नीय वो बाग़ है.

द्वरा: सैनिक ट्रेडर्स,
चौबेपुर, कानपुर


मधुर गंजमुरादाबादी 

हम-तुम

त्याग चिंतायं सभी तट पर कहीं
प्रेम-सागर में जगत से बेखबर
आज बेसुध हो बहे हम-तुम

अंगुलियाँ उठती अगर, उठती रहें
एक दूजे में परस्पर डूबकर
बहुँवो में रहें हम-तुम

बहुत गहरे पेठ मोती ला संके
पा सके आनंद जीवन का सही
अन न पीडायं सहें हम-तुम

प्रीती के उस चरम तक पहुंचे
हो जहाँ कुछ भी नहीं गोपन
खोल दें साड़ी तहें हम-तुम

गंज मुरादाबाद, उन्नाव
२०९८६९
09451376763 





जून २०१२-कथासागर


Dr. Srimati Tara Singh

 “ यह कैसी श्रद्धांजलियह कैसा प्यार 

       हमारे पड़ोस में एक शख्स रहते हैंकाफ़ी पढ़े-लिखे हैं । अच्छे घराने से ताल्लुक भी रखते हैं । यदा – कदा उनसे मेरी मुलाकातें हो जाया करती है । उनके नाम का रुतबा कहिएया फ़िर पड़ोसी होने की वजहमुझे भी उनसे मिलकर अच्छा लगता है । यूँ तो उम्र में वे मुझसे १०-१२ साल बड़े होंगेलेकिन जब भी हमारी बातें होती हैतो कोई किसी से बड़ा-छोटा नहीं रहता है । हाँ ! एक बात का ख्याल दोनों तरफ़ से रहता है कि किसी भी हालात में एक दूसरे के व्जूद को धक्का नहीं पहुँचे ।

         एक दिन उन-होंने मुझसे कहा,’मेरे घर एक छोटीसी पूजा का आयोजन है । मैं दो रोज पहले ही तुमको बता दूँगा । जिससे ऑफ़िस से छुट्टी न मिलने का तुम्हारा वहाना नहीं रहेगा । मैंने कहा,’आप प्यार से बुलाएँ और मैं नहीं आऊँऐसा हो नहीं सकता । आप भरोसा रखिएमैं अवश्य आऊँगी । समय बीतता चला गया ; महीनेमहीने हो गए लेकिन उन-होंने पूजा में आने की बात नहीं की । एक दिन मैं ही हँसीमजाक में बोल गई,’ आपके घर कब आना है । रोज आलकल में बदल जाता है लेकिन आपका बुलावा आने का इंतजार कभी खत्म नहीं होता है । क्या बात है , पुजा का प्रोग्राम कैंसिल कर दिये क्या ? उन-होंने कहा,’ नहींनहींअसल में क्या हुआघर के लोग दो घंटे पहले प्रोग्राम बनाए और आननफ़ानन में अनुष्ठान करना पड़ा । तुमको खबर देने की मोहलत ही नहीं मिली ।मुझे माफ़ कर दो,अगली बार ऐसी गलती नहीं होगी ।’ मैंने कहा ,’ठीक हैमगर एक फ़ोन कर देने में तो सिर्फ़ एक मिनट चाहिए था । आप फ़ोन ही कर देते , मैं आ जाती । इस पर उन्होंने बार – बार क्षमा माँगी और कहा,’गलति तो मैंने सचमुच बहुत बड़ी कर डालीलेकिन तुम मुझे क्षमा कर दो’ । मैंने भी सोचा,’ आदमी बुरा नहीं हैअच्छा हैतभी तो छोटी – सी गलती के लिए बार – बार क्षमा माँग रहा है ।

     कुछ दिनों बाद उनके एक रिश्तेदार मेरे घर आए । उन्होंने बताया, ’मैं आपके पड़ोस में सुशील जी के घर एक आयोजन में गया हुआ था । आपको सुशील जी ���े रास्ते में मिलते – जुलते देखा,समझ गयाआप उनके दोस्त हैं । तो सोचा , दोस्त के दोस्त से मिलता चलूँ । कल वापस लौट जा रहा हूँ ।
मैंने पूछा,’ आपको मैंने कभी देखा नहींआप उनके घर कब से हैं ? उन्होंने कहा, ’यहीदश दिनों से । पूजा के चार दिन पहले ही आ गया था ।’ पूजा खत्म हुए छदिन बीत गयेअब लौट रहा हूँ । मैं आता नहींघर पर अभी काफ़ी व्यस्तता चल रही थी । लेकिन उनके बार – बार फ़ोन द्वारा आने की जिद मैं टाल नहीं सका ।’ सुनते ही मैं समझ गईपूजा का आयोजन आनन – फ़ानन में नहींबल्कि एक सोची-समझीतय की गई तिथि के अन्तर्गत ही सम्पन्न हुआ । सुशील जी , मुझे झूठ बोले कि बुरा नहीं मानिएआपको बुलाने का समय नहीं मिला ।

      जो भी होसुशील जी को मैं यह बताना ठीक नहीं समझी कि आप कितने झूठ का सहारा लेते हैं । वे अपनी मीठी बोली बोलकरकितनों को अपना मित्र बनाकरउनके अरमानों से खेलते हैं । मैं तो लगभग इस दुर्घटना को भूल चुकी थी । अचानक उन्होंनेपुनएक रोज रास्ते में मेरी हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ’मित्र ! अगले महीने छजुलाई को मेरी माँ का स्वर्गवास हुए ३० साल हो जायगा । मैं हर साल इस तिथि को माँ की श्रद्धांजलि के रूप में मनाता आया हूँ । मंत्री – संत्रीसभी रहेंगे । मैं चाहता हूँतुम उसमें आओ ।’ मैने सोचालगता है इस बार ये अपनी भूल को सु्धारेंगे । इसलिए तय की हुई तिथि भी हमें बता रहे हैं । मैंने कहा,’ठीक हैमैं अवश्य आऊँगी ।’ चार तारिख को मैंने उन्हें फ़िर फ़ोन किया । सोचा जान लूँकितने बजे आना है । फ़ोन पर उनकी पत्नी ने बताया, ’ महाशयघर पर नहीं हैं,वे बाहर गए हुए हैंदश रोज बाद लौटेंगे ।’ मैंने कहा,’वो अपनी माँ की श्रद्धांजलि का अनुष्ठान जो होना थाउसका क्या हुआ ?’ मैं बोली,’वह तो हो गया । उनके बाहर जाने के एक दिन पहले हीक्योंकि छ:जुलाई को उनकी दीदी के बेटे की शादी है । शादी की तिथि तो बदली नहीं जा सकतीइसलिए अम्मा की श्राद्धांजलि दो रोज पहले ही मना ली गई । मुझे बहुत दुख हुआ । समझ में नहीं आ रहा था कि यह शख्स जब सामने होता हैतब हरिश्चन्द्र की औलाद लगता हैलेकिन यह मिरजाफ़र से कम नहीं है ।
इससे बचकर हमें रहना होगापता नहींकब कौन सी मुसीबत इसके चलते खड़ी हो जाय ।

      अचानक एक दिन फ़िर मिले । मैं तो मुँह फ़ेरकर निकल भागने की कोशिश में थी कि उन्होंने मेरा रास्ता रोक लिया । कहा,’ तुम बहुत नाराज हो मुझसे ? होना भी चाहिएमैं बहुत धोखेबाज हूँ । क्या करूँनियति के आगे मेरा कुछ चलता नहीं और लोग समझते , मैंने ऐसा जानबूझ कर किया । तुम्हारे साथ एक बार नहींयह तो दूसरी बार हुई । मैं सामने खड़ा हूँमुझे जो चाहे , सजा दो । लेकिन मुझसे मुँह मत मोड़ो ।’ मेरा दिल पिघल गया । मैंने कहा, ’वो सब तो ठीक हैलेकिन आपके साथ कोई मजबूरी आ गई थीमुझे फ़ोन कर देते ।’ उन्होंने कहा,’ फ़ोन कहाँ से करतामेरा सेलफ़ोन तो चोरी हो गया है,उसमें तुम्हारा फ़��न नं० भी था ।’ तब मैंने पूछा, ’ सुशील जी ! पिछ्ले साल जो पूजा हुई थीउसमें आपके मित्र , तिवारी जी भी आये थे । उन्होंने कहा,’ हाँवे किसी काम से मेरे घर आए थे । संयोग देखिएउसी दिन मेरे घर पूजा थी ।’ मैंने कहा,’ नहीं सुशील साहब ! वो तो बता रहे थेआपने उन्हें १५ दिन पहले खत लिखाफ़ोन पर भी आने का बहुत आग्रह किया । तब जाकर कहीं वे आए । तो आप झूठ क्यों बोलते हैं ? अब तो उम्र हो रहीउस मालिक के पास जाने का । जवानी भर तो झूठ बोले , अब तो सच बोलिए ।
          तपाक से सुशील जी बोल उठे,’ मेरी माँमुझे बहुत प्यार करती थी । मुझे भी माँ से बहुत प्यार था । लेकिन मेरी झूठ बोलने की आदत से कभीकभी नाराज हो जाया करती थी । कहती थी,’ बेटातुम सच तो क्यों नहीं बोलते ? झूथ बोलनाअच्छा नहीं होता । झूठ बोलनेवाला इनसानहमेशा किसी न किसी मुसीबत में बना रहता है । अब तो अम्मा नहीं रहीमगर सपने में आज भी मुझसे मिलने आया करती है ।’ मैंने कहा,’आपको जब माँ से इतना प्यार हैतो उनके दिल की जो सबसे बड़ी ख्वाहि्श थीउसे पूरा क्यों नहीं करते ? माँ को आपकी सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि आप सच बोलें । नहीं तोउनकी आत्मापुत्र की चिंता में भटकती रह जायगी ।
        सुनते ही उन्होंने कहा,’मैं दुनिया छॊड़ सकता हूँलेकिन झूठ बोलना नहीं छोड़ सकता क्योंकि जब तक झूठ बोलता रहूँगाअभी तक मेरी माँसच बोलने की जिद लेकर मुझसे मिलने मेरे सपनों में आती रहेगी । अगर मैंने सच बोलना शुरू कियातो माँ मेरी तरफ़ से निश्चिंत हो जायेगी । फ़िर कभी मिलने नहीं आयेगी । अब तुम्हीं बताओ कि मुझे सच बोलना चाहिए या झूठ । जब कि किसी भी कीमत पर मुझे माँ चाहिए । माँ को देखे बिनामैं भी जी नहीं सकूँगा ।’ उनके इस दर्द को मैं समझ पा रही थीक्या जवाब दूँ कि अनचाहे मुँह से निकल गया झूठ ।

संपर्क – 1502,सी क्वीन हेरिटेज़, प्लाट- 6,से० – 18, सानपाड़ा, नवी मुम्बई - 400705
दूरभाष -09322991198, 022- 32996316; 08080468596 
email :- rajivsinghonline@hotmail.com 
स्वरचित पुस्तकें प्रकाशित -- 24
काव्य संग्रह -- 18
(१) एक बूँद की प्यासी (२) सिसक रही दुनिया (३) हम पानी में भी खोजते रंग (४) एक पालकी चार कहार (५) साँझ भी हुई तो कितनी धुँधली (६) एक दीप जला लेना (७) रजनी में भी खिली रहूँ किस आस पर (८) अब तो ठंढी हो चली जीवन की राख (९) यह जीवन प्रातः समीरण-सा लघु है प्रिये (१०) तम की धार पर डोलती जगती की नौका (११) विषाद नदी से उठ रही ध्वनि (१२) नदिया-स्नेह बूँद सिकता बनती (१३) यह जग केवल स्वप्न असार (१४) सिमट रही संध्या की लाली (१५) साँझ का सूरज (१६) तिमिरांचला (१७) दूतिका (१८) समर्पिता
गज़ल संग्रह ---4
(१) नगमें हैं मेरे दिल के (२) खिरमने गुल (३) बर्गे यासमन ( ४) हसरते गुल
कहानी संग्रह --- 1
(१) तृषा 
उपन्यास - 1
दूसरी औरत

जून २०१२ व्यंग - मृदंग



स्वप्निल शर्मा


कुर्सी पर सवार लोकतंत्र 



घोडा घास 
चर गया



और आदमी अखबार.
इस फर्क को ढूढने में
जिन्दगी हो गई बीमार.

कब तक गुनगुने वादों के मन्त्र
यहाँ कुर्सी पर सवार हे लोकतंत्र.

हर कोई खिंच रहा हे
अपने साथ भीड़ को
भीड़ ढूंढ़ रही हे
एक अदद नीड़ को.

अब सोच के सन्दर्भ उखाड़ते जा रहे हे
सावधान हम खड़े हे, राष्ट्रगीत वो गा रहे हे.

ब्लाक कालोनी, मानवर
जिला- धार
४५४४४६ 

जून २०१२-लेख- आलेख


विश्वास की ज्योति –निकिता बेदी


हमारे जीवन में जब भी हम कोई नया कार्य करने जाते है |
तब हम डरते है की शयाद हम इस में सफलता ना प्राप्त कर सके ?
लेकिन , हम यह भूल जाते है की जीवन में अगर हमे असफलता का सामना करना पढ़ेगा |
तभी , ,तो हम और सहनशील और साहसी बन पाएगे |
तो व्यक्ति को कभी भी म्हणत करने से डरना नहीं चाहिए |
बल्कि और ज़्यादा मजबूत होना चाहिए |
की अगर हमे इस कार्य में सफलता नहीं मिली तो शयाद दूसरे कार्य में मिल जाएगी |
और इसके लिए हमे अपने अन्दर विश्वास की उत्पत्ति करनी होगी ?
विश्वास से तो व्यक्ति पूरा संसार जित सकता है |
तो अगर आपके दिल में विश्वास है तो ही आप आगे जिंदगी में बढ़ सकते है |

मानव जीवन में हर व्यक्ति को जीने के लिए देखना ज़रूरी है |
पर , कुछ लोग ऐसे भी है जो देख ही नहीं सकते |
लेकिन , फिर भी वो अपने मन की आखो से अपनी दुनिया को देखते है |
हम इंसान अपनी आखो से भी duniya की खूबसूरती को नहीं परख पाते |
और वो लोग बिना देखे ही सब कुछ देख ले ते है |
अगर , लोग चाहे तो अपने जीवन में उजाला अपने कर्म से ला सकते है |