संजय वर्मा 'दृष्टि'
टेसू
ऐसे लगते मानो
खेल रहे हो पहाडो से होली
सुबह का सूरज
गोरी के गाल
जैसे बता रहे हो
खेली हे हुने भी होली
सन्ग टेसू के
प्रकृति के रंग की छटा
जो मोसम से अपने आप
आ जाती है धरती पर
फीके हो जाते हैं हमारे
निर्मित क्रत्रिम रंग
डर लगता है
कोई काट
न ले विरिछों को
ढँक न ले प्रदुषण सूरज को
उपाय ऐसा सोचें
प्राकृत के संग हम
खेल सके होली.
१२५, शहीद भगतसिंह मार्ग (लोहार पट्टी)
मनावर, जिला - धार, ४५४४४६
माँ जैसी
विनीता जोशी
माँ जैसी
जंगल के
बीचों- बिच
पसरी हे बूढी नदी
सूरज की ओर
पीठ किये
उसके
पत्थर के सिरहाने तले
अब भी बचें है
कल-कल कतरे सपने
मंसूबो की गहरी
कांख में दबाये
कभी झपकी लेती फिर
जग जाती
किसे क्या देगी का
हिसाब लगाती
एकदम माँ जैसी
तिवारी खोला
पूर्वी पोखर खाली
अल्मोरा -२६३६०१
09411096830
सबा युनुस
मुझे खोने के डर से..
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मेरे हाथों की लकीरों में खुद को ढूंढ रहा था वो,
अपने अश्को को पलकों में छुपाये,
अपनी बेबसी पे हस रहा था वो..
बिखरे हुए ख्वाबो के टुकड़े बटोर कर,
मुझे हिम्मत दे रहा था वो,
सिसकती आँहों को सीने में दबाये,
उम्मीदों के महेल खड़े कर रहा था वो,
अपने जज्बातों से कुछ इस तरह लड़ रहा था वो,
के, किस्तों में हस रहा था,
और.. किस्तों में रो रहा था वो...
कानपूर
09336205773
सफलता सरोज
प्यार
प्यार है महल भावनाओ का
नीवं पे विश्वास की है जो खडा
आस की हर ईंट है इसमें गडी
गारे की हर सवेदन से जोड़ी गयी
प्यार भक्ति-शक्ति की प्राचीर है
टूटी न कभी, है बहुत तोड़ी गयी
प्यार है असीम दर्द वेदना
आराधना उपासना है प्यार है
प्यार में अनुभूति है, विभूति है
प्यार निराकार में, साकार में
प्यार गगन के हेरदय में पल रहा
प्यार धरा का असीम त्याग है
प्यार में ईश-सी पवित्रिता
नेह का निसर्ग्नीय वो बाग़ है.
द्वरा: सैनिक ट्रेडर्स,
चौबेपुर, कानपुर
मधुर गंजमुरादाबादी
हम-तुम
त्याग चिंतायं सभी तट पर कहीं
प्रेम-सागर में जगत से बेखबर
आज बेसुध हो बहे हम-तुम
अंगुलियाँ उठती अगर, उठती रहें
एक दूजे में परस्पर डूबकर
बहुँवो में रहें हम-तुम
बहुत गहरे पेठ मोती ला संके
पा सके आनंद जीवन का सही
अन न पीडायं सहें हम-तुम
प्रीती के उस चरम तक पहुंचे
हो जहाँ कुछ भी नहीं गोपन
खोल दें साड़ी तहें हम-तुम
गंज मुरादाबाद, उन्नाव
२०९८६९
09451376763
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