साँझ

Sanjh, e-magzine

संपादिका - अंकिता पंवार
सहसंपादक - सुधीर मौर्य 'सुधीर'































Friday 1 June 2012

जून २०१२ अतीत से


ग़ज़ल 

कैसा माजी था, क्या है हाल अपना
देखना था हमे जवाल अपना

और भी हो गये है हम तनहा
एक ज़रा आया था, ख्याल अपना

दश्त हो, बाज-गश्त से आबाद
कोई दोहराय, फिर सवाल अपना 

ये सफ़र ख़त्म यूँ नहीं होता
रास्ता बदलें, माह-ओ-साल अपना

देख, हम फिर, जला रहे है चिराग
ऐ हवा, होंसला निकाल अपना

शहरयार


अदम गोंडवी की ग़ज़ल

किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी
कल के  बदनाम अंधेरों पे मेहरबाँ होगी

शहर-शहर में मुख्तलिफ जुबान के झगड़े 
मुझको लगता हे नई नस्ल बेजुबाँ होगी

खिले हें फूल कटी छातियों की धरती पर
फिर मेरे गीत में मासूमियत कहाँ होगी

आप आयन तो कभी गावं की चौपालों में
मे रहूँ या न रहूँ भूख मेजबाँ होगी

बकौल डार्विन बुजदिल ही मरे जायंगे 
सरकशी यूँ ही 'अदम' मेरे कारवां होगी

अदम गोंडवी      


फिराक गोरखपुरी की ग़ज़ल

                                                      
वुसते-बेकराँ में खो जाए
आसमानों के राज़ हो जाए

क्या अजब तेरे चंद तर-दमन 
सबके दागे-गुनाह धो जाए

शादो-नाशाद हर तरह के हें लोग
किस पे हंस जाए,किस पे रो जाए

यूँ ही रुसवाइयों का नाम उछले
इश्क में आबरू डुबो जाए

जिन्दगी क्या हे आज इसे ऐ दोस्त
सोच लें और उदास हो जाए

फिराक गोरखपुरी  

परवीन शाकिर की नज़्म

                                                                     आज की शब तो कोई तौर गुज़र जायगी


रात गहरी हे मगर चाँद चमकता है अभी
मेरे माथे पे तेरा प्यार दमकता अभी
मेरी सांसो में तेरा लम्स महकता है अभी
मेरे सिने में तेरा नाम धडकता है abhi
जीस्त करने को मेरे पास बहुत कुछ हे अभी

तेरी आवाज़ का जादू है अभी मेरे लिए
तेरे मलबूस की खुशबु है अभी मेरे लिए
तेरी बाहें, तेरा पहलु है अभी मेरे लिए
सबसे बढकर, मेरी जां ! तूँ है अभी मेरे लिए
जीस्त करने को मेरे पास बहुत कुछ है अभी
आज की शब तो कोई तौर गुज़र जाएगी

परवीन शाकिर
       

  

      

1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।

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